શનિવાર, 19 જાન્યુઆરી, 2013

गुजरात के वीर सपूत की शौर्यगाथा : अलविदा रणछोड़ पगी...

उनकी धुंधली दिख रही
तस्वीर के साथ हमारे 
राष्ट्र की राजनीति, 
संरक्षण और कूटनीति
भी धुंधली नजर आ रही है 

1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के असली हीरो रणछोड़ पगी (पगी अर्थात पैरो के निशान को परख कर दुश्मन और उसके छिपने के ठिकाने  को ढूंढ़ निकालने की विशेष कला - यहाँ पर यही शब्द का प्रयोग उचित रहेगा क्योकि ये उनका विशेषण बन चूका है) का 101 साल की आयु में निधन हुआ जब उन्हें पता चला की पाकिस्तानी सना हिंदुस्तानी सेना के दो जवानो के सर काटकर ले गई है, ये हादसा वो बर्दास्त नहीं कर शके और उनके प्राण शरीर से अलग हो गए। पुलिस के जवानो द्वार वीर सपूत को गार्ड ऑफ़ ऑनर के साथ श्रद्धांजलि प्रदान की गई।

कच्छ के छोटे रण से सटे हुए बनासकांठा जिले के सुइगाम के नजदीक छोटे से गाव से देशवासी अनजान होगे मगर इस प्रदेश में शायद ही कोई इनके नाम से अपरिचित होग। 1971 के युद्ध में अपना योगदान प्रदान करने वाले रणछोड़ पगी को जनरल शाम माणेक सा ने उनका सम्मान किया था। दुश्मन के पदचिह्नो से उसे ढूंढ़ निकालने की अद्भुत कला में माहिर होने की वजह से उन्हें लश्कर में नौकरी दी गई थी। इस वीर सपूत को पकड़ने  के लिए पाकिस्तान ने बहोत से हथकंडे अपनाए मगर इस नर बांकुरे ने पकिस्तान के हर पैतरे और चाल को नाकाम बना दिया था। आयु बढ़ने के बावजूद 1971 के युद्ध की बाते करते ही वे जोश में आ जाते थे। 101 वर्ष की लम्बी आयु में भी वे निरोगी और सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत कर ही रहे थे। रणछोड़ पगी रेडियो पर खबरे सुनने के आदि थे, हाला की उन्हें थोडा ऊँचा सुनाई देता था। समाचार की सत्यता की परख करने के लिए उन्होंने अपने पुत्र से उस खबर का जायजा लिया जिसमे पाकिस्तानी सनाने हमारे दो जवानो की निर्ममता से हत्या की थी ये सुनते ही उनका शारीर गुस्से में कांपने लगा और कुछ ही पल में उनकी आत्मा शारीर से निकल गई। जहा हमारे सत्ताधिसो के माथे पर से जू तक नहीं रेंगती वहा इस बूढ़े सिपाही को ये शर्म नाक हादसा नागवारा था।

सुइगाम : प्रणाम मातृभूमि ...
भारत - पाकिस्तान के बटवारे के समय में पाकिस्तानी लश्कर इस इलाके में अपनी ढोस ज़माने के लिए गाव के लोगो को परेशान करते थे। उस समय निहत्थे रणछोड़ भाई ने चार पाकिस्तानी सैनिको को ख़त्म कर दिया था और वो भी पाकिस्तानी बन्दुक और कारतूसो से! फिर उनकी मुलाकात उस समय के पुलिस अफसर वनराज सिंह जाला से हुई थी। रणछोड़ भाई रण में ही बड़े हुए थे इस लिए रण के राजा थे। मनुष्य हो या जानवर किसी के भी पैरो को निशान पर से वो बता देते की वो इन्सान कहा से आया, कहा गया और वो कितना वजन उठा के गया! उनकी ये मास्टरी को देखते हुए सात रूपए के वेतन से पुलिस में नौकरी मिल गई। सरहदी इलाको में घूसखोरो को पकड़ने के लिए ये पगी बहुत उपयोगी साबित होते है और फिर रणछोड़ भाई तो इस कला में माहिर थे।

1971 में जंग छिड़ी तब रणछोड़ भाई छुट्टियो पर थे। कर्नल सरदारसिंह राणा की अगुवाई में पकिस्तान की और बढ़ाना था पर ये उतना आसन नहीं था। कर्नल के आदेश को शिर चढ़ाके वे स्थिति का जायजा लेने आगे निकले और पीछे फ़ौज इलाको पर कब्ज़ा जमाते हुए आगे बढती गई। फ़ौज का लक्ष्य पाकिस्तान के द्वारा कब्जे में लिए गए नगरपरकर गाव और फिर रणछोड़ भाई को नगर परक जाने का आदेश हुआ। वे निकल पड़े थे अकेले अँधेरी रात में---

रणछोड़ भाई युद्ध कलाए सिखे, आगे बढ़ते गए। थके और जख्मी हालत में उट और सामान को खिचते हुए चलते रहे। वक्त पर शस्त्र सरंजाम नगरपाराक पहोच गया और बाकी बचा काम हमारे जवनोने कर दिया। 1971  का युद्ध जितने के बाद तो रणछोड़ भाई लश्कर में सब के चहिते बन गए। युद्ध जितने के बाद रणछोड़ भाई अफसरों के साथ रण में तेरह महीनो तक घुमते रहे। अफसरों को जहा नक्षा प्राप्त करने में दिक्कत होती वहा ये जीता जगाता नक्षा मौजूद ही था! लश्कर की ऐसी सेवा के बदोलत सरकार की और से उन्हों तिन बार मैडल दिए गए है। इनाम से ज्यादा वो इस बात से ज्यादा गर्व महसूस करते थे की खुद शाम मानेकशा ने उन्हें नवाजा था। जिस टीम में रणछोड़ पगी थे वह बिलकुल भी खुवारी नहीं हुई थी, ये आश्चर्य की बात थी।

युद्ध में उनकी कौशल्यता और शौर्य की बाते सुनकर उस समय अमरीकन अफसर उनके गाव लिम्बाला पहोच गए थे। रणछोड़ भाई की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उन्होंने स्थानीय तहसीलदार के पैसे चुरा लिए और कहा की उसे ढूंढ़  निकालो। उन्होंने तहसीलदार के पैरो के निशान को पहचान लिया। वो अमेरिकन अफसर रणछोड़ भाई पर फ़िदा हो गया था।

उस समय रणछोड़ भाई लश्करी जवानो में सही अर्थ में हीरो थे। यहाँ तक की उनको जिन्दा या मृत पकड़ने के लिए पाकिस्तान ने इनाम घोषित किया था। आज इन सब बातो पर समय की धुल चढ़ गई है। उनके दो पुत्र में से एक पुलिस फ़ोर्स में है और दूसरा बोर्डर पर फर्ज अदा कर रहे है।

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