શનિવાર, 28 જાન્યુઆરી, 2012

मै और मेरी पत्रकारिता...(टर्निंग पॉइंट ऑफ़ माय लाइफ १)

तृतीय वर्ष बी ए के इम्तिहान के बाद रात रात भर जागा करता था और सोचता रहता था के आगे क्या होगा? एम ए किया जाये या कुछ और? सारा दिन पुस्तकालय और इधर उधर घुमने में बिताया करता था ताकी नकारात्मक विचार हावी न हो जाये. तब मेरी आयु १९ साल की थी.
और वो दिन आ गया जिसका इंतजार था. रिजल्ट आ गया. द्वितीय श्रेणी में पास भी हो गया पर वो दिमाग से निकल नहीं रहा था-आगे क्या? मै पुस्तकालय से अपनी मार्क-सीट लेकर लौट ही रहा था तब मेरे एक दोस्त ने मेरे हाथ में एक अखबारी विज्ञापन का कटिंग थमा दिया और वो अपनी मार्क-सीट लेने चला गया. वो कटिंग कटिंग नहीं मेरे जीवन का टर्निंग पॉइंट था जिसकी वजह से मै पत्रकार बन गया. ११ साल बीत गए इस क्षण को और वो मित्र का कोई संपर्क नहीं है और करना भी नहीं चाहता, सिर्फ एक बार मिला था वो-जाना की बी ऐ के बाद उसने एम् ऐ और एमफिल किया और एक स्कुल में सेवारत है और मै...???  

  गुजरात विद्यापीठ (अमदावाद) में पत्रकारिता की  पढ़ाई करते समय मैंने तुरंत ही भाप लिया की ये सब पढ़ाई इम्तहान रिलेटेड ही है और नाही कुछ ज्ञानलक्षी है और न प्रेक्टिकली. ढेरो अखबार, मैगज़ीन और पुस्तक लायब्रेरी में भरे पड़े थे पर पढने के लिए वक्त ही नहीं मिल पा रहा था क्योंकी सुबह से साम तक सिर्फ लेक्चर अटेंड करने पड़ते थे.  और मै वक्त निकालने लगा लेक्चर छोड़ के... अभ्यास करता रहा, समजता गया और लिखने लगा. मेरा प्रथम लेख 'मुंबई समाचार' दैनिक में प्रगट हुआ. और उसके बाद बहोत से लेख अन्य अखबारों में प्रगट हुए. तब सोचता था  की मेरी ये लेखनी ही मुझे आगे ले जायेगी पर तब पता नहीं था की ये लेखनी मेरे माथे पे एक लेबल  चिपका देगी और मेरा करियर तूफानी हो जायेगा. मै तो वही लिखता था जो मुझे सत्य लगता था पर पढ़ने वाले को ये कोमवादी लगता था.हाला की मै किसी भी संगठन में सामिल नहीं था और आज भी नहीं हूँ. मै तो यही सोच के पत्रकारिता के क्षेत्र में आया था की पढ़ाई के बाद कोई भी अखबारी ऑफिस में छोटी मोटी नौकरी मिल जाएगी और गुजारा हो  जाएगा. पर होनी को कुछ और ही मंजूर था. ये क्षेत्र मेरे लिए इतना वक्र होगा तब मुझे ये पता नहीं था.

 पढ़ाई के दौरान हमसे एक सर्वे करवाया गया था, हाला की इसमें विद्या पीठ का कुछ लेना देना नहीं था. ये सर्वे एक अंग्रेजी मैगज़ीन और एक न्यूज़ चेनल के लिए एक सर्वे एजंसी ने करवाया था. पैसे देने का वादा भी किया था पर परिणाम उनके विचार से विपरीत आया तो आधे पैसे दे कर गायब हो गए. हुआ यु की तीन तीन विद्यार्थियो की टीम बनाकर एक प्रश्नावली बनवाकर गुजरात के विभिन्न मत क्षेत्रो में हमें भेजा गया. विद्यर्थीओने महेनत और लगन से काम किया. प्रश्नावलिमे सेंसेटिव प्रश्न थे फिर भी बिना शिकायत काम पूरा किया और परिणाम बी जे पी के समर्थन में जा रहा था और उनको शंका हुई की ये हमने गलत किया है. फिर उन्होंने क्रोस चेकिंग करवाई. टीम में अदला बदली करवाके सबको अलग अलग जगह भेजा गया. परिणाम फिर भी भाजपा के पक्षमे जा रहा था और हमें पुरे पैसे नहीं मिले और न किसी का उल्लेख भी किया गया. (वो गुजरात विधान सभा चुनाव २००२ का प्रे पोल था) 

(अगर आपको मेरा आत्म कथानक पसंद आया हो तो जरूर बताए तभी ये आगे जारी रहेगा और मेरा होंसला बढेगा क्योकि आगे सेंसेटिव मुद्दे भी  आयेंगे - गोधराकांड के बाद गुजरात विधानसभा चुनाव २००२, मेरे थीसिस को जान बुज के कम मार्क्स देना)



6 ટિપ્પણીઓ:

  1. patta patta buta buta haal hamara jane he,
    jane n jane gul hi na jane baag to sara jane he.

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  2. साधू साधू ! भाई, लिखोगे तो लोग पढ़ेंगे. बाकि पढनेके बाद में प्रतिक्रिया देने वाले कम मात्र में होते है. उसमे भी जिन्हें आपका लिखा पसंद आयेगा उनका प्रमाण तो न के बराबर होगा. आज तो सिर्फ लाइक करनेका जमाना है.
    बाकि रही लिखनेकी बात. तो लिखिए. अवश्य लिखिए. सम्वेदनशील मुद्दों पे भी लिखिए. खुद के साथ वफादारी के साथ लिखिए. नाम और शोहरत तो उसके पीछे आएगी ही आएगी. आपको ढेर सारी शुभकामनाए.

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  3. आपका आत्म कथानक एक सहज सरल लेखन है
    जारी रखिए

    हाँ, परीक्षित जोशी जी ने बिलकुल ठीक लिखा है आपकी अपेक्षा के प्रत्युत्तर में

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  4. पाबला जी, परीक्षित भाई - अपेक्षा का मतलब मेरी वाह वाही करवाना नहीं है, मेरा हिंदी लेखन कैसा है यही जानना है क्योकि आज तक सब कुछ गुजराती में ही किया है. हिंदी में लिखना मेरे लिए इतना सरल नहीं है, मै अपनी मर्यादा जनता हु, यदि यही लेखन गुजराती में होता तो अपेक्षाए एक दो तीन स्टेप आगे होती.

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